वास्तु में शैया का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग शयनकक्ष में ही बिताता है।
योगशास्त्र में भी निद्रा की अवधि और अवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें
जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति व तुरीय चार
अवस्थाएँ बताई गई हैं।
वास्तुशास्त्र में शैया के लिए लकड़ी के स्पष्ट निर्देश हैं कि वृक्ष की आयु का परीक्षण करके ही उसका प्रयोग करना चाहिए। दक्षिण भारत के ग्रंथों में शैया के लिए चंदन का प्रयोग भी उचित ठहराया गया है।
शैया की माप के बारे में विधान है कि शैया की लंबाई सोने वाले व्यक्ति की लंबाई से कुछ अधिक होना चाहिए। पलंग में लगा शीशा वास्तु की दृष्टि से दोष है, क्योंकि शयनकर्ता को शयन के समय अपना प्रतिबिम्ब नजर आना उसकी आयु क्षीण करने के अलावा दीर्घ रोग को जन्म देने वाला होता है।
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एक आरामदायक
शयन कक्ष के लिए जो तथ्य जरूरी हैं, वे हैं आरामदायक पलंग, आँखों को भाने वाली रोशनी और
कमरे की सजावट। कमरे की सजावट के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं-
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