Wednesday 3 September 2014

Santaan sambandhit samasya ka jyotishya karan

         
                                       मातृत्व सुख, समस्याएँ और  निदान
स्त्री  जीवन की सार्थकता मातृत्व मे ही देखी गयी है.विवाह संस्था का मुख्य प्रायोजन भी यही है की स्त्री,पुरुष संतान को जन्म देकर सृष्टि की रचना मे अपना योगदान कर ,पूर्वजों ऋण से मुक्त  हो जाए.
जातक परिजातके अनुसार ,संतान उत्पत्ति स्त्री के जीवन को सार्थक बनाकर उसका भग्योदय करती है. अतः नवम भाव को भी संतान भाव के रूप मे माना जाना चाहिए .नवमेश की कुंडली मे स्थिति व अन्य ग्रहों के साथ उसके संबंधों पर भी विचार किया जाना चाहिए.
ऋषिपराशर के अनुसार लग्न और चंद्र लग्न से नवम भावों मे से जो बलशाली हो ,वही भाव  संतानोत्पत्ति के लिए कारक भाव माना जाना चाहिए .दूसरी ओर जैमिनी ऋषिने स्त्री के कुंडली मे संतान के संकेत के लिए सप्तम भाव के अध्ययन की भी आवश्यकता बताई है.

व्यस्क और स्वस्थ स्त्री मे उसके रजस्वला होने से लेकर रजोनिव्रित्ति  तक का काल एक कामचक्र 

द्वारा चक्र का एक चरण अंड निर्माण व प्रवाह का और दूसरा चक्र मासिक धर्म का एक होता है,जो 

बारी-बारी से चलते रहते है.ज्योतिर्विदो के अनुसार यह कामचक्र मंगल व चंद्र के बीच                                                                                                                                                                                                            for more detail please click this link http://trinetraastro.com/
  
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ganesh dev ki peeth

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